जयपुर शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर जयपुर ग्रामीण जिले के जोबनेर नगरपालिका में अरावली पहाड़ की चोटी पर बना ज्वाला माता जी का एक प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ है
यह शक्तिपीठ संगमरमर के पत्थर से बना है. मंदिर में प्रवेश गणेश पोल से होकर जाता है.. प्रथम आपको काली माता जी के दर्शन करने को मिलेगा फिर ज्वाला माताजी के दर्शन होंगे.
मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव ने सती के मृत शरीर को उठाकर ताण्डव किया था जिससे सती माता का शरीर छिन्न भिन्न होकर अलग अलग जगहों पर गिरा था उन सभी जगहों को शक्तिपीठ कहते हैं. यहां जोबनेर में सती माता का जानू भाग अर्थात घुटना वाला हिस्सा गिरा था जिसको प्रतीक रूप में यहां पूजा जाता है..
मंदिर पहाड़ की चोटी पर होने के कारण दर्शनार्थियों को चढ़ाई करके जाना पड़ता है.. चढ़ाई थोड़ी खड़ी है जो बुजुर्गों के लिए थोड़ी कठिन हो सकती है लेकिन एक बात अच्छी है की यहां सीढ़ियों की जगह रैंप बनाया गया है ताकि चढ़ाई करने पर ज्यादा परेशानी ना हो.
दर्शन करने के बाद निकास द्वार से जोबनेर का किला और पूरा शहर दिखाई पड़ता है. यहां ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण आपको राजस्थानी पोशाकों में सजे पुरुष और महिलाएं दिखाई देंगी.
पर्यटन की दृष्टि से जोबनेर में कोई खास नहीं है लेकिन जोबनेर में 1947 में रावल नरेद्र सिंह ने भारत का पहला एग्रीकल्चर कॉलेज का निर्माण करवाया था जो अब क्रषि विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है जहां कृषि संबंधी अनुसन्धान और प्रसार के प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात है.
जोबनेर से करीब 30 किलोमीटर दूर सांभर नामक जगह है जहां कई किलोमीटर दूर फैली नमक की सफेद झील दिखाई देंगी. पर्यटन की दृष्टि से इस जगह को विकसित किया गया है यहां भ्रमण हेतु हेरिटेज ट्रेन भी चलाई जाती है जो आपको नमक की झीलों और कारखानों का भ्रमण कराएगी. सांभर झील के किनारे ही शाकमभरी माता जी का प्राचीन मंदिर भी है मंदिर के सामने खुला मैदान है जहां कई फिल्मों की शुटिंग भी होती है, सांभर बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है.
1. मंदिर का प्रवेश द्वार जहां से चढ़ाई शुरू होती है
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें