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पूनम की रात


पूनम की रात..

वो पूनम की रात
छीन कर ले गई तुमको 
मुझ से 
इस घर से
बहुत दूर
बिन पते वाली जगह

कैसे भूल जाऊं वो पल 
जो तुम्हारी गैर हाजरी का
अहसास कराते रहते हैं
याद तो तुम्हे भी होगा
वो हमारा प्रथम प्रणय निवेदन
रानाप्रताप सागर के किनारे
जब सांझ ढल रही थी
और चेहरा तुम्हारा 
सिंदूरी हो गया था

वो मसूरी की वादियों में
हम तुम और ढेर सारी बातें
पहाड़ी पोशाक में 
तुम्हारे बालों में ठूंसता
वो पहाड़ी फूल बाला फोटो
अब भी याद है

वो चप्पल पहन के
तुम्हारा रोटी बनाना
दो तीन बर्तनों और
बत्ती वाले केरोसिन स्टोव में 
कुकिंग करना
और एक ही थाली में
साथ साथ खाना 
और खिलाना

वो दिल्ली की
संघर्षवाली जिंदगी
बसों की धक्का मुक्की
ट्रैफिक का मजमा
जिसमें कब सुबह होती थी
और कब चुपके से
सांझ ढल जाती थी
पता ही नहीं चलता था

शनिवार के दिन
वो इंडिया गेट की शामें
शानू के हाथ में गुब्बारे
और हमारे हाथों में
चने मुरमुरे 
कभी आइसक्रीम का कप

और अक्सर इतवार को 
बजाज चेतक की सवारी
कभी सुल्तानपुर
कभी दमदमा
तो कभी सोहना

वो पहली मारुति की
छोटी नीली कार
और फिर घूमने का सिलसिला 
जयपुर और रावतभाटा
कभी रेगिस्तान
तो कभी पहाड़
जब भी छुट्टी हो
चलो मेरे यार...

फिर अचानक 
इस जीवन में 
दुखों से सामना
अपोलो में तुम्हारा
कैंसर का इलाज

उस दौरान घर का 
एक्सप्रेस वे में आजाना
फिर टूटे घर का शोक मनाना
एक फिर से नया घर लेना
और एक दिन सब कुछ बेचकर
जयपुर लौट के आजाना

मेट्रो जयपुर में तुम्हारा
दिल का इलाज
फिर एक रात
कॉविड ने तुम्हारी
जान ले लेना

दुखों में हंसते रहना
कोई तुम से सीखे प्रत्या 
आज भी याद आते है
वो खुशियों के पल
तुम्हारा रिटायरमेंट का दिन
फिर से नए फ्लैट में 
हम तीनो का नया संसार
बहुत याद आता है
वो गुजरा जमाना

किसे मालूम था
एक दिन अचानक
इसी घर से तुम
विदा हो जाओगी
फिर कभी नहीं आओगी

आज भी तुम्हारी हंसी
तुम्हारी चंचलता
तुम्हारा अल्हड़पन
तुम्हारे हाथों का स्पर्श 
अक्सर रुला देता है

अब तो जीना पड़ेगा 
ये जीवन भी
तुम्हारी यादों के संग
चाहे अच्छा लगे या बुरा
लिए फिर से एकाकीपन...

(इस छोटी सी जिंदगी में, जमाने को दिखाने के लिए... दिल रो भी रहा हो तो भी इंसान को हंसना पड़ता है क्योंकि जिन्दगी की यही रीत है, यहां कहीं पे खुशियां हैं तो कहीं यादों पर टिका हुआ ये संसार है)