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कहानी : मिट्टी


कहानी : मिट्टी .....

"गुरुदेव अमीर और गरीब में क्या फर्क होता है" शिष्य ने अपने गुरु से जानना चाहा 
"गुरुदेव बोले फर्क तो कुछ नहीं होता हाँ सांसारिक फर्क जरूर होता है" गुरुदेव दार्शनिक अंदाज़ में बोले
चेले ने उत्सुकतावश फिर शंका का समाधान चाहा "गुरुदेव कृपया समझाइये"
"चलो मेरे साथ" गुरुदेव शिष्य को शमशान घाट ले गए जहाँ दो चिताएं जल रही थी फिर शिष्य की तरफ मुख़ातिब होकर बोले "बताओ इसमें गरीब की और अमीर की चिता कौनसी है"
"गुरुदेव ये बताना तो असंभव है क्योंकि दोनों चिताएं एक जैसी है"
बस यही फर्क है कि जन्म से मरण तक इंसान गरीब, अमीर और बहुत कुछ होता है और मरने के बाद सब मिट्टी है मिट्टी"
😊😊😊

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लघु कथा : फर्क 

सड़क पर खड़ीं लड़की ने मोटर साइकिल वाले को आवाज दी सर आप गोल मार्किट जा रहे हो
लड़की की सुन्दरता को निहारते हुए लड़का बोला जी में वहीँ जा रहा हूँ आइए बैठीये
लड़की ने शालीनता से कहा मुझे नहीं मेरी माताजी को जाना है में उन्हें बुलाती हूँजैसे ही लड़की अपनी माँ को बुलाने के लिए मुड़ी लड़का नौ दो ग्यारह हो गया
लड़की ने जाते हुए लड़के को देखा और सोचा मैंने ऐसा क्या कहा जो ये भाग गया

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लघु कथाएं .....................


किसके लिए
माँ मैं में ये बच्चा पैदा नहीं कर सकती मैंने इस बारे में रोहित को भी बता दिया है" अदिति ने अपनी सास को दो टूक भाषा में कहा तो सास की तो सांस ही अटक गयी
बेटा ऐसा मत करो हमारा वंश कैसे बढेगा" इस बार सास की गिडगिडाने की बारी थी
नहीं माँ जी ये नहीं हो सकता., आपको मालूम है इस बार में कंपनी में डाइरेक्टर बन जाओंगी फिर मेरे पास पैसा और रूतबा दोनों होगा" बहू ने मोटा दाव फेका
किसके लिए इतना धन इकठ्ठा करेगी जब तेरे मरने के बाद कोई खाने वाला ही नहीं होगा " इस बार सास जोरों से गुर्राई
दोनों तरफ अजीब सा बहुत गहरा सन्नाटा था


उपहार
"सुनो आज मेरे भाई की लड़की का जन्मदिन है उसे सोने का टॉप्स दे दूँ तो कैसा रहेगा" पत्नी ने अंगुली नाचते हुए कहा
जरूर दो भई, तुम्हे कौन रोक सकता है" पति ने मन मसोसते हुए कहा
और अपने आप को कोसने लगा "साला जब मैंने अपने भाई की लड़की को उसके जन्म दिन पर २०० रूपये देना चाह रहा था तब इसको सांप सूंघ गया था कितनी आँखें नाचाइ थीं क्या उपहार भी रिश्ते देख कर दिया जाता है
ये पतिदेव की समझ से परे था


प्रसाद
मंदिर में बहुत भीड़ थी नहीं लगता था की एक घंटे में नंबर आयेगा हाथ में प्रसाद और माला लिए अंकित परेशान हो रहा था उसने अपनी पत्नी सुरभि से कहा "लगता है बहुत समय लगेगा कहो तो फिर कभी आजाते हैं भगवान् थोड़ी कहीं जाने वाले हैं " भरे मन से सुरभि ने कहा "ठीक है जैसा आप ठीक समझो" यह सुनकर अंकित को अच्छा लगा आजकल ऐसे समझोता करने वाली पत्नियाँ मिलती कहा हैं.

"बाबा सच में बहुत भूखा हूँ कुछ भी दे दो" दुबला पतला पैरों से लाचार भिखारी लाइन में लगे लोगों से मांग रहा था अंकित ने अपने हाथ में मिठाई का डिब्बा देखा और उसकी लाचार व् दयनीय स्थिति को देखा.. थोडा ठिठका फिर उसकी ओर डिब्बा बढाया और बोला "ले ये भोले का प्रसाद है"
चुप्पी तोड़ते हुए सुरभि ने कहा सुनो आज आपने इस गरीब को प्रशाद देकर शिव जी की सच्ची पूजा की है .. साक्षात् भगवन के दर्शन हो गए हैं चलो अब घर चलते हैं" दोनों ख़ुशीयों भरे मन से घर को ओर बढ़ रहे थे

दहेज़
सुनो शर्मा जी ने अपने लड़के की शादी में दहेज़ लेने से मना कर दिया .. मालूम है लड़की वाले बहुत अमीर हैं और मालूम है वो बहुत बड़ी गाडी भी दे रहे थे " पत्नी ने अपने पति सुधीर से कहा
तो क्या हुआ अच्छी बात है दहेज़ लेना सामाजिक और कानूनी अपराध है" इस बार सुधीर ने कहा तो पत्नी सुनंदा गुर्रा पड़ी " हूँ ये तो शर्मा जी ने बडी बेेवकूफी की है अरे हाथ आई लक्ष्मी को ठुकरा दिया ये शर्मा जी तो एक नंबर के बेवकूफ निकले " सुनंदा हँसे जा रही थी
एक बात पूछूँ.. क्या तुम अपनी लड़की की शादी में बड़ी गाडी और मोटा दहेज़ दे सकती हो, नहीं ना मालूम है दुनिया शर्माजी जैसे कुछ अच्छे लोगों की वजह से टिकी हुई है समझे" इस बार सुधीर ने कहा तो सुनंदा को बोलती बंद हो गई







कहानी : उपहार











लघु कथा - उपहार

मां-बेटे बड़े प्यार और तल्लीनता से खाना खा रहे थे. अचानक रामू ने खाते-खाते चुप्पी तोड़ी, “माँ, आज तूने इतनी देर क्यों कर दी...”

हीरा बाई निवाला चबाते हुए बोली, “अरे, परसों दिवाली है ना.. मालकिन साफ-सफाई में लगी हुई थी. मैं भी उनका हाथ बटाने लगी. हमें उनकी मिठाई का डिब्बा और बख्शिश का भार भी तो उतारना होता है. इसीलिए देर हो गयी.”

“माँ, ये बड़े लोग अमीर होकर भी गरीबों को उपहार में मिठाई का डिब्बा ही क्योँं पकड़ा देते हैं; मैने देखा था उन लोगों के घर तो बड़े बड़े डिब्बे और काजू बादाम ना जाने क्या क्या आते हैं"

हीरा बाई हंसकर बोली, “बेटा जिसकी नीयत और भावना जैसी होगी वैसा ही तौ देगा, वैसे भी एक दिन काजू बादाम नहीं खायेंगे तौ कुछ नही होगा"

बेटे की बात हीरा बाई के मन को छू गई और गंभीरता से मुस्कुराकर बोली, “बेटा, उपहार और लक्ष्मी झोपड़पट्टी में नहीं, कोठियों में जाती है.”

“ऐसा क्यों माँ....?”
“क्योंकि वह गरीब के झोपड़ में नहीं, अमीर की मजबूत कोठियों में रहना पसंद करती है.”

बेटे की अबोध आंखों ने मां के चेहरे के पर उभरे बेबसी के भावों को भांप लिया. वह आगे बिना कोई सवाल किये नजरें झुकाकर चुपचाप खाने लगा.

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