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हरेला

उत्तरांचल का एक त्योहार : हरेला 

उत्तरांचल का एक प्रसिद्ध त्योहार हरेला पूरे उत्तरांचल में धूम धाम से मनाया जाता है.. हरेला का हरियाली से बड़ा संबंध है और ये उत्तरांचल का पूरे विश्व को एक संदेश है...

उत्तरांचल में हरेला त्यौहार मनाने के लिए नौ दिन पहले हरेला बोया जाता है इसके लिए साफ़ मिट्टी खोदकर सुखाई जाती है, फिर किसी पात्र या टोकरी में मिटटी डालकर सात प्रकार के बीज जैसे गेहूं, जौ, धान, गहत, उड़द, सरसों, मक्का आदि बो दिए जाते हैं.. फिर अगले नौ दिनों तक प्रतिदिन सुबह और शाम की पूजा के वक्त इसमें पानी डालकर देखरेख की जाती है और नौवे दिन हरेले की गुड़ाई की जाती है...

माना जाता है कि जितना अच्छा हरेला होगा उतना ही अच्छी फसल होगी.. साथ ही भगवान् से प्रार्थना भी की जाती है कि उनकी फसल अच्छी हो..

दसवे दिन हरेले को काटकर सर्वप्रथम मंदिर में चढ़ाया जाता है तथा स्थानीय देवता जैसे माननीय गोलू देवता, जय भूमिया देवता आदि मंदिरों में भी जाकर हरेले को चढ़ाया जाता है.. इस दिन घर पर पकवान भी बनाये जाते हैं...बड़ों द्वारा हरेला चढ़ाते वक्त दीर्घायु और बुद्धिमता का आशीर्वाद देते हुए लोकगीत गया जाता है..

उत्तरांचल भारतीय संस्कृति का स्त्रोत्र है यही कारण है की सभी देवी देवता यहीं विचरण करते है

जय उत्तरांचल🙂🙂🧁🙏

बैसी : उत्तरांचल में विशेष पूजा

बैसी : उत्तराखंड के पहाड़ों में की जाने वाली विशेष पूजा.. 

उत्तराखंड के निवासी विश्व के किसी भी कोने में रहते हों उनका जुड़ाव पहाड़ से किसी ना किसी तरह से रहता ही है और जब भी ये लोग गाँव जाते हैं विशेष तौर पर पुश्तेनी घर में पूजा करने ही आते हैं. इनकी पूजा में इनके सगे संबंधी और मित्र भी आमंत्रित होते हैं.. 

मित्रो इसी तरह की विशेष पूजा जिसे "बैसी" कहा जाता है का आयोजन हमारे संबंधीयों के गाँव,  जो की  द्वाराहाट उत्तराखंड में है, बहुत  नज़दीक से जानने और देखने को मिला..  

ग्रामीणों के अनुसार यह पूजा 22 दिन तक चलने वाली बहुत ही कठिन पूजा होती है. मैंने देखा की गाँव के विशाल मंदिर में गुरु गोरखनाथ जी की धूनी में निकटवर्ती गाँवों के 14 भक्त जो जोशी परिवारों से संबंध रखते हैं, 22 दिनों से यहां तपस्यारत हैं जिन्हें "भगत" कहा जाता है. 

बैसी पूजा में तपस्यारत भगत को दिन में एक समय का भोजन (स्वनिर्मित) करता है उसे दिन में कम से कम तीन बार स्नान करना पड़ता है जिसमे सबसे पहला स्नान ब्रह्म मुहूर्त में गावँ के नौले (जलाशय) में करना होता है और इसके अलावा दिनभर परम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ गुरु गोरखनाथ की धूनी पर धूनी रमाना और भजन गाना इनकी रोज़ की दिनचर्या में शामिल होता है. 21वें दिन ये पास की नदी में नहाने जाते हैं नए सफेद वस्त्र, पहाड़ी सफेद टोपी और गेरुआ झोला धारण करते हैं तथा उसी रात को गाँव के प्रत्येक घर जाकर गाँव और घरों की सुरक्षा की प्रार्थना करते हैं..  22वें दिन गाँव में विशाल भंडारा होता है जिसमे सभी गाँव वाले प्रशाद प्राप्त करते हैं.. उसके बाद 23वें दिन अर्थात अंतिम दिन, बैसी में बैठे सभी भगत घर की ओर प्रस्थान करते हैं.. 

आयोजन के विसर्जन के बाद सभी भक्तों को जिन्हें "भगत" कहा जाता है, इन सभी को गाँव में विशेष दर्जा दिया जाता है और गाँव के विशेष आयोजनो में विशेष स्थान भी मिलता है. 

जय हो महान तपस्वी बाबा गोरखनाथ जी की सदा जय हो... 


गांव के मंदिर में अंतिम दिन पूजा और भंडारा


गांव का शिवालय जहां भगत लोग साधना करते हैं


अंतिम दिन  सभी भगतों का अपने अपने घरों में स्वागत


गांव का नौला  जहां भगत लोग ब्रह्म मुहूर्त  में स्नान करते हैं

नोट: यह लेख - Bhanti गांव के निवासियों  की सहायता और जानकारी लेकर लिखा गया है