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बचपन के दिन

वो बचपन के दिन भी क्या दिन थे
बन्दर बन पेड़ों की शाखाओं पर चढ़ना
कुछ खाना कुछ फेंकना
वो गली में गिल्ली डंडा खेलना
और पड़ोस के खिड़की दरवाजे तोड़ना
परीक्षा के पहले मंदिरों के दर्शन करना
परसेंटेज को गोली मारो, हे भगवान् बस पास करदेना
वो रामलीला के चर्चे, वो होली का हुरदंग
दिवाली हो या ईद बस मजे करना
वो बचपन की यादें एक मीठा एहसास
याद की गठरी बन कर रहता है पास
जिन्दगी भर मुस्करानो को ...............