जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं



जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं  

उत्तराँचल राज्य के अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 34 किमी दूर जागेश्वर धाम  स्थित  है. इस स्थान को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूण के नाम से जाना जाता है। समुद्र तल से करीब 1860 मीटर उंचाई पर स्थित यह स्थान अपने मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर समूह में स्थित शिवलिंग द्वादश शिवलिंगों में से एक है। देवों के देव महादेव का यह धाम चारों ओर देववृक्ष देवदार के घने पेडों से घिरा होने के कारण यह स्थान आध्यात्मिक क्रिया कलापों के लिए एक शांत स्थान है, वहीं प्रकृति की सुन्दरता ने इसे और भी मनोरम बना डाला है। सामने फैली मनमोहक घाटी, सीढीदार खेतों एवं दो मंजिला पारंपरिक मकानों का आकर्षण बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। यह मंदिर समूह जटा गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसा है और चारों तरफ फैली हरियाली एवं देवदार के पेडों से भरे भव्य पहाड प्रकृति के विशेष  आनन्द प्रदान करने में सक्षम हैं।
जागेश्वर धाम के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। मुख्य मंदिर परिसर में करीब 125 प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इनमें 108 मंदिर भगवान शिव के हैं जबकि 17 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को यहाँ मुख्य मंदिर का दर्जा दिया जाता है. सुर, नर, मुनियों द्वारा भगवान शिव के पूजन से इस जाग्रत स्थान का नाम जागेश्वर पड़ा होगा. हमारे धार्मिक ग्रंथों में खासकर  स्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया गया है ।  लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। इतना ही नहीं  जागेश्वर  मंदिर समूह  पूर्व में कोटेश्वर, पश्चिम में डंडेश्वर, उत्तर में वृद्ध जागेश्वर व दक्षिण में झांकर सैम मंदिर से घिरा हुआ है और ये सभी स्थान बहुत ही प्राचीन और अपना अध्यात्मिक महत्व रखते हैं.

पुराणों के अनुसार रावण, मार्कण्डेय, पांडव व लव-कुश ने भी यहाँ शिव पूजन किया था इतना ही नहीं भात्वान शिवजी तथा सप्तऋषियों ने भी यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।

सावन के महीने में यहां भगवान शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करने लोग दूर दूर से आते हैं. पूरे सावन के महीने भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। जागेश्वर मंदिर समूह जाने के लिए एक छोटे से बाजार से गुजरना पड़ता है जो की पहाड के ग्रामीण अंचल की संस्कृति की बहुत सुन्दर छवि प्रकट करता है. मंदिर समूह के पास ही एक राजकीय संग्रहालय भी बनाया गया है जिसमें कई प्राचीन मूर्तियों को संरक्षित किया गया है।

जागेश्वर मंदिरों के पास ही एक शमशान घाट भी है। यहां के लोगों का मानना है कि इसमें दाह संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए आस पास के गांव वाले या अन्य जगह के लोग अपने सगे सम्बन्धियों का दह संस्कार यही करना चाहते हैं.

सभी उत्तराँचल वासिओं को जागेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम के दर्शन जरूर करने चाहिये. जटा गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसा यह शिव धाम बहुत ही मनमोहक स्थान है जहा भगवान शिव के आशीर्वाद के साथ साथ मन को अध्यात्मिक एवं मनोवैग्यानिक शांति मिलती है. अब तो यहाँ पर्यटकों के लिए सरकारी होटल के साथ साथ निजी होटलों की भी व्यावस्था है इतना ही नहीं  पूर्ण शाकाहारी भोजन के साथ साथ यहाँ जरूरत की सभी चीजें आसानी से उपलब्ध है.

| जय भारत जय उत्तराखंड |

.