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रामगढ़ जयपुर

आज जयपुर स्थापना दिवस पर....

ये जयपुर शहर
आज और बूढ़ा हो गया
यादों के झरोखों से
रामगढ़ झील नज़र आई...
चलती थी ढेरों नावेँ कभी यहां
प्यास भी बुझाता था इस शहर की
रौनके होती थी पर्यटकों की यहां
कभी एशियाड गेम की  नौकायन यहां
अब वक्त की नज़ाकत कहो या
सरकार की बेरुखी से
ऐसा जुल्म हुआ की
खो गई झील 
बस यादों का सिला रह गया....

1983 - रामगढ़ झील, जयपुर

किशनबाग डेजर्ट पार्क : जयपुर

किशन बाग डेजर्ट पार्क  : जयपुर 

जयपुर शहर के विद्याधर नगर में स्थित स्वर्ण जयन्ती पार्क के अंदर नाहरगढ की तलहटी में प्राकृृतिक रूप से बने रेत के टीलों पर करीब 64 हैक्टर के क्षेत्रफल में किशनबाग डेजर्ट पार्क बनाया गया है...
चित्र : पार्क में बैठने और पीने के पानी की व्यवस्था भी है

इस बाग में मौजूद रेतीले टीलों को ही स्थाई कर वहाँ पर पाये जाने वाले जीव जन्तुओं के प्राकृतिक वास को सुरक्षित रखते हुए, कई प्राकृतिक संसाधनों का पूरा उपयोग किया गया है.. विभिन्न प्रकार के आश्चर्यचकित करने वाले पत्थरों को भी संग्रहित किया है जो आप देख सकते है.. ऐसा लगता है मानो पत्थर बोल पड़ेंगे...
चित्र : लकड़ी और पत्थर से बना सुंदर वॉक वे 

पर्यटकों की सुविधा हेतु पत्थर और लकड़ी से बना वॉकवे बहुत ही सुंदर लगता है... 
चित्र : मनोरम दृश्य से भरपूर जहां पानी, रेत और हरियाली देखने की मिलेगी

प्रकृति प्रेमियों के लिए ये जगह वरदान है

मंगलवार को यह पार्क बंद रहता है

बंधे के बाला जी बोराज़

बन्धे के बालाजी : बोराज 

बन्धे के बालाजी का प्रसिद्ध मंदिर, जयपुर अजमेर रोड पर महला से जोबनेर के रास्ते बोराज़ कस्बे के पास ऊगरियावास गांव में स्थित है. यह मंदिर जयपुर शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर है.

चित्र : बाला जी का  प्रमुख मंदिर 

सूत्रों के अनुसार बन्धे के बालाजी की मूर्ति संवत 1752 के समय की मानी जाती है और यह भी माना जाता है की बाला जी की यह मूर्ति एक बंजारा परिवार द्वारा लायी गई थी. अक्सर बंजारे सांभर से नमक लादकर आगे बेचने के लिए इसी जगह से होकर जाया करते थे और रात्रि विश्राम यहीं किया करते थे क्योंकि यह जगह उनको अधिक सुविधाजनक लगती थी.

चित्र :  बाला जी के मंदिर का प्रवेश द्वार

कहते हैं की एक रात बंजारा परिवार जिसके पास यह बाला जी की मूर्ति थी उसने सोने से पहले  इस मूर्ति को अपने नमक से निकालकर आंगन में रख दी थी. सुबह चलते वक्त जब बंजारे ने इस मूर्ति को उठाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की तो बालाजी की मूर्ति अपने स्थान से बिल्कुल भी नहीं हिली तो बंजारा बाला जी की मूर्ति को वहीं छोड़कर अपने घर चला गया, घर जाकर देखता है कि उसकी अंधी मां की आंखों की रोशनी लौट आई है उसने सोचा यह तो जरुर बाला जी की मूर्ति का  ही चमत्कार है, वह वापस आया और उसने मूर्ति को आज के वर्तमान मंदिर के स्थान पर स्थापित कर दिया, तब से यह मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं की भी आस्था का केंद्र बन गया.

चित्र : बाला जी के मदिर के सामने अन्य मंदिर

बाला जी के मुख्य मंदिर में बहुत बड़ा हॉल है और बीच में सिंदूर से नहाए हुए बाला जी की प्रतिमा है, मंदिर प्रांगण में गणेश जी, दुर्गा माता जी और  राम दरबार की मुर्तिया विराजित है. ठीक बाला जी के मंदिर के सामने विशाल शिव मंदिर, नव ग्रह मंदिर और साई मंदिर भी है. शिव मंदिर के पीछे सुंदर हरा भरा पार्क भी है जहां पेड़ों की छाया में आप विश्राम कर सकते हैं.

मुख्य सड़क पर गौशाला के नजदीक हनुमान जी और शिव जी की बहुत विशाल रंगीन मूर्ति सबको आकर्षित करती है.
चित्र : हनुमान जी और शिव जी की विशाल प्रतिमा

दर्शनार्थियों को सुविधा के लिए मंदिर के चारों तरफ प्रसाद की दुकानें, खाने पीने की दुकानें और बहुत से ठेले लगे हैं जिनमें बच्चों के खिलौने और घर का अन्य सामान मिल जाता है.

मंदिर से करीब 20 किलोमीटर के दायरे में फुलेरा के पास सांभर लेक है जहां  नमक की विशाल झील, शाकंभरी माता का मंदिर और देवयानी मंदिर स्थित है. सांभर लेक से जयपुर लौटते वक्त रास्ते में जोबनेर नामक जगह पर पहाड़ी पर स्थित ज्वाला माता जी का सुंदर मंदिर भी दर्शन के लिए प्यारी जगह है. बारिश के दिनों में राजस्थान बहुत सुंदर हो जाता है

सांभर लेक : नामक की झील

नोट : राजस्थान में हनुमान जी को बाला जी भी कहते हैं
तो फिर "पधारो म्हारे देश"......








जगदीश जी का मंदिर गोनेर जयपुर

श्री लक्ष्मी जगदीश मंदिर, 
गोनेर, जयपुर

जयपुर शहर से करीब 20 KM दूर गोनेर में स्थित है श्री लक्ष्मी-जगदीश महाराज जी का करीब 500 वर्ष पुराना मंदिर .. ऐसा कहा जाता है कि इस गांव के किसान के सामने लक्ष्मी-जगदीश भगवान साक्षात प्रकट हुए और जमीन में दबी अपनी मूर्तियों को को बाहर निकालकर विधिपूर्वक स्थापित करने का आदेश भी दिया था...  

एकादशी के दिन यहां भक्तों का मेला लगा रहता है.. यहां मालपुए, दाल और मिर्ची की सब्जी जिसे टपोरे कहते हैं, लाजबाब होते हैं..

कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान इस मंदिर को बहुत नुकसान पहुंचाया गया था ...जयपुर राजघराने तथा अन्य भक्तों के सहयोग से मन्दिर का पुनः निर्माण कराया गया.. मंदिर का प्रवेश द्वार और मुख्य मंडप संगमरमर से बना हुआ है ..

मंदिर के पास ही एक तालाब है और एक पुरानी बावड़ी भी है.. गोनेर ग्राम में राजा महाराजाओं द्वारा निर्मित एक पुरानी  हवेली भी है जिसमे आजकल राजकीय शिक्षक प्रक्षिक्षण संस्थान  चलता है..

पर्यटक जो चोखी ढाणी जाते हैं और यह मंदिर भी देखना चाहें  तो हैं गोनेर ; चोखी ढाणी से करीब 8 KM दूर होगा.. हां शुद्ध ग्रामीण परिवेश का आनंद मिलेगा आपको यहां...


मंदिर का प्रवेश द्वार


पुराने किले में स्थित शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान


पुरानी बावड़ी


तालाब 

😊😊☺️☺️

ज्वाला माता मंदिर : जोबनेर

ज्वाला माताजी का मंदिर

जयपुर शहर से करीब 55 किलोमीटर दूर जयपुर ग्रामीण जिले के जोबनेर नगरपालिका में अरावली पहाड़ की चोटी पर बना ज्वाला माता जी का एक प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ है

यह शक्तिपीठ संगमरमर के पत्थर से बना है. मंदिर में प्रवेश गणेश पोल से होकर जाता है.. प्रथम आपको काली माता जी के दर्शन करने को मिलेगा फिर ज्वाला माताजी के दर्शन होंगे.

मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव ने सती के मृत शरीर को उठाकर ताण्डव किया था जिससे सती माता का शरीर छिन्न भिन्न होकर अलग अलग जगहों पर गिरा था उन सभी जगहों को शक्तिपीठ कहते हैं. यहां जोबनेर में सती माता का जानू भाग अर्थात घुटना वाला हिस्सा गिरा था जिसको प्रतीक रूप में यहां पूजा जाता है..

मंदिर पहाड़ की चोटी पर होने के कारण दर्शनार्थियों को चढ़ाई करके जाना पड़ता है.. चढ़ाई थोड़ी खड़ी है जो बुजुर्गों के लिए थोड़ी कठिन हो सकती है लेकिन एक बात अच्छी है की यहां सीढ़ियों की जगह रैंप बनाया गया है ताकि चढ़ाई करने पर ज्यादा परेशानी ना हो.

दर्शन करने के बाद निकास द्वार से जोबनेर का किला और पूरा शहर दिखाई पड़ता है. यहां ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण आपको राजस्थानी पोशाकों में सजे पुरुष और महिलाएं दिखाई देंगी. 

पर्यटन की दृष्टि से जोबनेर में कोई खास नहीं है लेकिन जोबनेर में 1947 में रावल नरेद्र सिंह ने भारत का पहला एग्रीकल्चर कॉलेज का निर्माण करवाया था जो अब क्रषि विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है जहां कृषि संबंधी अनुसन्धान और प्रसार के प्रमुख केन्द्र के रूप में विख्यात है.

जोबनेर से करीब 30 किलोमीटर दूर सांभर नामक जगह है जहां कई किलोमीटर दूर फैली नमक की सफेद  झील दिखाई देंगी. पर्यटन की दृष्टि से इस जगह को विकसित किया गया है यहां भ्रमण हेतु हेरिटेज ट्रेन भी चलाई जाती है जो आपको नमक की झीलों और कारखानों का भ्रमण कराएगी. सांभर झील के किनारे ही शाकमभरी माता जी का प्राचीन मंदिर भी है मंदिर के सामने खुला मैदान है जहां कई फिल्मों की शुटिंग भी होती है, सांभर बहुत ही ख़ूबसूरत जगह है.

1. मंदिर का प्रवेश द्वार जहां से चढ़ाई शुरू होती है


2. जवाला माता जी की सुंदर प्रतिमा


3. काली माता जी की प्रतिमा


4. मंदिर से जोबनेर शहर का विहंगम दृश्य


5. सपेरा और नाग देवता : सावन के महिने में नागराज के दर्शन 


ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

बाड़ा पदमपुरा जयपुर

श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र
बाड़ा पदमपुरा, जयपुर

बाड़ा पदमपुरा राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर के शिवदासपुरा नामक कस्बे के पास है. यह धार्मिक जगह जयपुर से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित है

मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मूला जाट नाम के व्यक्ति को मकान की नींव खोदते वक्त भगवान पद्मप्रभु की पत्थर की मूर्ति निकली थी. कहते हैं की प्रभु  की मूर्ति के दर्शन और मंदिर बनने के बाद गांव में फैली महामारी का प्रकोप खत्म हुआ, खुशहाली आई और पानी की कमी भी पूरी हो गई .

सफेद मार्बल से बना यह खूबसूरत मंदिर बहुत ही सुंदर है मंदिर के अंदर भगवान महाप्रभु की  विशाल, मनमोहक, आकर्षक और प्रभावशाली मूर्ति है. प्रभु के दर्शन कर दर्शनार्थी अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रार्थना और पूजा करते हैं.

मंदिर के विशाल क्षेत्र में सुंदर बगीचे, यात्रियों के ठहरने का स्थान (यह सुविधा केवल जैनियों के लिए ही है) , भोजनशाला और शांत आध्यात्मिक वातावरण है. सफेद मार्बल से बने इस मंदिर की खूबसूरती बहुत ही सुंदर और मनभावन है..

जय हो महाप्रभु 


यादें : जुलाई 2019


जगदीश जी मंदिर, गोनेर जयपुर

श्री जगदीश जी का मंदिर
ग्राम : गोनेर (जयपुर)

जयपुर शहर से करीब 20 KM दूर प्रताप नगर के नजदीक ग्राम गोनेर में श्री जगदीश जी महाराज का अति प्राचीन और सिद्ध मंदिर है जो ग्रामीण जनों के बीच तो बहुत ही प्रसिद्ध है. लोगो का मानना है की यह मंदिर ५०० साल से भी ज्यादा पुराना बना हुआ है और इस मंदिर की पूजा सदियों से चलती आ रही है. यहां एक पुराना फोर्ट भी है जिसमे एक जमाने में राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान चलता था..

किवदंती है की श्री जगदीश महाराज की मूर्ति अपने आप जमींन से प्रकट हुई है और फिर बाद मैं इस मूर्ति को विधि विधान के साथ मंदिर मैं स्थापित किया गया था जिसमें जयपुर राजघराने ने भी सहायता की थी..... जगदीश जी के भक्तों में इस मन्दिर की बहुत मान्यता है, यहां श्रद्धालु जो भी मांगता है उसकी इच्छा पूरी हो जाती है. एकादशी को यहां बहुत भीड़ होती है.

मंदिर के पास ही एक तालाब है को बारिश में भरा होता है, एक छोटा सा ग्रामीण मार्केट भी है जहां प्रसाद से सजी दुकानें हैं, परचूनी, चूड़ियों की दुकानें हैं, कृषि संबंधी औजारों की दुकानें यानी आस पास के ग्रामीण लोगों के लिए सभी जरूरी सामान यहां उपलब्ध है. 

एक खास बात है की यहां जिसकी मांग यानी मन्नत पूरी जो जाती है वह भगवान को भोग में मालपुआ, दाल और मिर्च के टपोरे और खीर का भोग लगाकर अपने संबंधीयों और मित्रों को खिलाते है . ये वास्तव में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं. यहां इनको बनाने वालों की बहुत सी दुकानें है, आप इनको खरीद कर घर भी ले जा सकते हैं.

यदि आप ग्रामीण जीवन की झलक, ग्रामीण जीवन, पहाड़ का और प्रभु के दर्शन का आनंद चाहते हैं तो जयपुर से इस ग्रामीण मंदिर में जरूर आएं, हां ये चोखी ढाणी और टोंक रोड से करीब 7 KM होगा. जयपुर शहर से लोकल सिटी बस भी आती है. 

ॐ विष्णवे नमः