यादें, कविताएं


फूल.......
कभी कांटों के बीच
कभी कीचड़ में
कभी गमलों में
कभी वीराने में
कभी पहाड़ की चोटी पर
जहां कहीं भी हो
फूल हमेशा मुस्काते हैं...

अपने पराये........
मैं खुश था लोग मुझे पहचानते थे
मशहूर होने का शौक नहीं था मुझे..
किसी ने अछाईयों से जाना 
किसी ने बुरा भला कहा..
जिंदगी भी कितनी अजीब है
जिसको जितनी जरुरत थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे....
अजीब सी कश- म - कश है ये जिंदगी
जब जीतते थे, पराये भी अपने थे
अब ये आलम है की अपने भी पराये हैं..


कोई टिप्पणी नहीं: