यादें....
ढूंढ़ रहा है ये दिल
फिर से वही
फुर्सत के रात दिन.....
याद करता है
वो जाड़ों की सुबहें
बालकनी में बैठकर
गरम चाय का प्याला
हाथ में लिए हुए......
या छत पर
जड़ों की नरम धूप में
लंबी कुरसी पर लेटे हुए......
या गर्मियों की सुबहों में
वो लंबे रास्तों की
सैर को जाते हुए......
शाम की ठंडी हवाओं में
बेंच पर बैठ बतियाते हुए.....
घर की खिड़की से झांककर
लहलहाते खेतों के देखते हुए..
या शाम के साये में
सूरज को जाते देखते हुए
या वो रातों में अकेले चाँद को
तारों के साथ देखते हुए....
ये दिल आज भी ढूंढता है
फिर से वही फुर्सत के रात दिन..
🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂
चलते चलते.....
वो चिता की राख बन कर बोली
मेरा जिस्म तो अमानत है राख की
ये रूह तुम्हारे लिए छोड़ जाती हूँ...
🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂
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