यादें

नक्की झील बाजार....

आबू पर्वत....


यादें...

2017 : नक्की झील, आबू

ना सफर का पता था
ना मंजिलों का 
फिर भी हम
चले थे साथ साथ.....
और अब 
अकेले हम अकेले तुम  
मंजिलों का 
अब भी पता नहीं...




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