कविताऐं, यादें


गांव छूटा
राज्य छूटा
परदेश में बस गए हम...
हमारी संस्कृति ना छूटे
ये ले लो प्रण...

रेखा चित्र : एक उत्तराखंडी आधुनिक बाला आंखों में काला चश्मा और पारंपरिक पुछोड़ा पहने हुए.. सच में ग्रामीण लोग बदल रहे हैं..
😊😊😊😊😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀😀



भीगे पेड़ मेरे
बरसा जो पानी यहां......
जल्दी आजा 
ए हरियाली
बिन बीज बोए यहां....
हरे भरे खेत मेरे
ओह हो हो.....

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कल कल छल छल करती 
सुंदर गीत सुनाती गंगा,
गाँव, खेत, मैदान, नगर, या वन,
सबकी प्यास बुझाती गंगा
हे मां गंगे आपको बारंबार प्रणाम...

अगस्त 2019 : हरिद्वार 


रात ने कहा
शुभ रात्रि मित्रो
अब सो जाओ
नई सुबह की आस में
सपनों में खो जाओ।
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