आज मैं आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध गीत से रुबरु करता हूँ इसे गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने बड़े ही भावनात्मक रूप से गाया है....
बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरणी काफल पाको चैता मेरी छैला
भुण भुण दिन आयो,
नरण बुझ तेरी मैता मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -
ओ नरण काफल पाको चैता मेरी छैला
आप खांनी पान सुपारी -
ओ नरण मैं भि लूँछ बीडी मेरी छैला
बेडु पाको बारो मासा -
ओ नरण काफल पाको चैत मेरी छैला
अल्मोडा की नंदा देवी,
नरण फुल चढूनी पात मेरी छैला
त्यार खुटा मा कांटो बुड्या,
नरणा मेरी खुटी में पीडा मेरी छैला
बेडु पाको बातो मासा
अल्मोडा को लल्ल बजारा,
नरणा लल्ल मटा की सीढी मेरी छैला
ओ बेडु पाको बारो मासा,
ओ नरेन काफल पाको मेरी छैला
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तुम याद आए.....
मैं रूठा, तुम भी रूठ गयी
फिर मनाएगा कौन ?
आज दरार है, कल खाई होगी
फिर भरेगा कौन ?
मैं भी चुप, तुम भी चुप
इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?
बात छोटी को लगा लोगी दिल से,
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर,
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
न मैं राजी, न तुम राजी,
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?
डूब जाएगा यादों में दिल कभी,
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?
एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी,
इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन ?
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने आँखें....
तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन ?
यह कविता : फेसबुक के सौजन्य से
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