कविताऐं


कलियुग....

ये कलियुग है
मौसम की तरह
यहां लोग भी 
पल पल बदल रहे हैं...
🙂🙂🙂🙂🙂


एक फिल्मी गीत.......

ए मेरे दिल कही और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया
ढूँढ ले अब कोई घर नया
ए मेरे दिल कही और चल
चल जहाँ गम के मारे ना हो
झूठी आशा के तारे ना हो
चल जहाँ गम के मारे ना हो
झूठी आशा के तारे ना हो
झूठी आशा के तारे ना हो
इन बहारो से क्या फ़ायदा
जिस में दिल की कली जल गयी
जखम फिर से हरा हो गया
ए मेरे दिल कही और चल
चार आँसू कोई रो लिया
फेर के मूह कोई चल दिया
चार आँसू कोई रो लिया
फेर के मूह कोई चल दिया
फेर के मूह कोई चल दिया
लूट रहा था किसी का जहा
देखती रह गयी ये ज़मीन
छुप रहा बेरहूं आसमान
आए मेरे दिल कही और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया
ढूँढ ले अब कोई घर नया
आए मेरे दिल कही और चल

फिल्म : दाग : 1952

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