कविताऐं.......
जिंदगी कोरी डायरी सी
और मैं कलम की स्याही सा..
स्याही खत्म होती रही
डायरी है कि भरती नहीं...
☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️
आओ दोस्तो
लौट जायें
बचपन के उन दिनों में
जहां खेलते थे
गिल्ली डंडा
सितोलिया
राउंडर बैट
रिंगबाल
खो खो
कबड्डी
छुप्पम छुपाई
लंगड़ी टांग
आंख मिचौली
ना जाने क्या क्या
वो साथ बैठ के पढ़ना
साईकल चलाना
नदी में नहाना
खेत में घूमना
रामलीला देखना
परीक्षा के दौरान
मंदिर मंदिर भागना
प्रशाद बोलना
मास्टर जी की पिटाई
ग्राउंड में दौड़ाई
कक्षा में झाड़ू लगाना
यूनिफार्म में स्कूल जाना
वो डंबल परेड़
वो नाटक
वो अंताक्षरी
आजभी याद आती है
कहाँ वो हरे भरे मैदान
आज गलियों में खो गए
और हम आज
बचपन से दूर
कहाँ पहुंच गए...
क्यों ना
चलो फिर से स्कूल चलें हम
☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️😊😊😊
ए जिंदगी
मत खेल मेरी खुशियों से
एक दिन तो
तुझे भी हारना ही पड़ेगा....
☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️
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