लघु कविताएं...
एक दिन खुदा से
रूबरू क्या हुआ था मैं
कहने लगे
जिंदगी तेरे हिसाब से नहीं
मेरे हिसाब से चलती है...
🙂🙂🙂🙂
वो मेरे सर पर
जब भी हाथ फेरती है
उसकी दुवा भी
दवा लगती है
मां ऐसी ही होती है
🙂🙂🙂🙂
मैं दौलत के ढेर पर
इतराता हुआ खुश था
जब आंख खुली तो
खुदा की गोद में
अकेला था...
🙂🙂🙂🙂
"अहम"
यही तो है
सबसे बड़ा वहम ...
🙂🙂🙂🙂
सभी का जिन्दगी में
एक ही मकसद रह गया है
उसके कपड़े,
मेरे से ज्यादा सफेद क्यों
🙂🙂🙂🙂
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