आईना: कवितायें

 कवितायेँ ............................


आइना

सच भी कहूँ
तो जुठला देता है
कभी कभी
ये घूसखोर आइना

आंसूं
आसूं की एक बूँद
किसी समुन्दर से
कम तो नहीं

तेरी हंसी
तेरा हँसना
जैसे चन्द का
जमीं पर आ जाना


मन की खिड़की
क्यों चुप हो
कभी तो
मन की खिड़कियाँ खोलो

ये जीवन
ये जीवन
कभी कभी
आसुंओ की बहती
एक धारा है .

इंसानियत
मंदिर से आती हैं
घंटियों की आवाज़
मस्जिद से आती है
अज़ान की आवाज
नाजाने क्यों फिर भी क्यों
तन जाती है तलवार

धर्म और नेता
धर्म के नाम में
चढ़ गए कई सूली
नेताओं ने की जम के
वोटों की वसूली


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