कविताऐं….................
मनचाही मंजिलें नहीं होती
क्यों ना चलें हम सब
साथ साथ...
🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂🙂😁
रातें हैं
तो ख्वाब हैं
इन ख़्वाबों का क्या.....
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धूप भी सिखाती है
छावं भी सिखाती है
ये जो जिंदगी है ना अपनी
फिर इस से नाराज़गी कैसी.........
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कल चांद
सपनों में नही
बालकनी में मिलने आया.....
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मुसीबत
सभी पे आती है
फिर ये नाराजगी कैसी....
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थाम लो ख्वाइशें अपनी
वार्ना जिंदगी
अपना तरीका बदल देगी.......
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जिंदगी को
बेहतर बनाने के लिए
जिंदगी से ही
जंग मौल ले ली मैंने.........
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हवाओं से
नही बदले हैं रिश्ते मैने
जिधर ले चले
चला जाता हूँ मै.........
कोई तो लिखता है
नसीब हम सबका
वरना
पत्थरों के शहर में
हमारा भी एक महल होता
सपनों का........
सांझ ढलने लगी
सूर्य हुआ मध्यम
सभी घर को लौट चले.....
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