कविताएं...
मैं हूं चालबाज
बुनता हूं
शब्दों का जाल
चाहे कोई समझे
या ना समझे
😀😀😀😀😀😀😀
मर्द भी रोता हैं
लेकिन चुपके चुपके
दर्द उनको भी होता है
तन्हाई में डूबा रहता है
आंसू पी लेता है
बोझिल आंखे होती है
फिर भी नही सोता है
हां मर्द भी रोता है
जिंदगी में कभी कभी
जीते जी अपनी लाश भी
खुद ही ढोता है
हां मर्द भी रोता है
😀😀😀😀😀😀😀
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