शामें ....
सुहानी मस्तानी शामें
मदहोश कर देती हैं।
और सुना जाती है
अनकही दास्तानें,…
कंक्रीट .
कल तक खेत थे
जो हरे भरे
विकास के नाम पर
कट रहे हैं पेड़ बड़े बड़े
अब बैठने को छांव तक नही....
खामोशियां......
अक्सर खामोशीयां
बहुत कुछ कह जाती है
कोई अनजान बने तो क्यों
लबों पे जमाने ने ताले जो जड़े हैं
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