यादें


तम्मनाएं....

तम्मनाएँ  पूरी नही हमारी
तो क्या हुआ
चाहते हैं हम फिर भी
किसी की तो तम्मनाएं 
पूरी होनी ही चाहिए...

यादें...

कभी कभी 
हमें भी याद कर लिया करो दोस्तो...
हम तो 
हिचकी आने से ही खुश हो जाते हैं...


सांझ........

सांझ घिर आई
खेतों के किनारे 
थके भाष्कर दौड़ रहे हैं
पाने संध्या की छावं...

शाम....

शाम ढले
पर्वत किनारे
बैठा देख रहा था मैं....
थके सूरज को
दबे पांव जाते हुए
संध्या की गोद में...





कोई टिप्पणी नहीं: