शायरी


शायरी

निदा फ़ाज़ली साहब मन को बातों को शेर ओ शायरी में इस कदर व्यक्त करते हैं लगता है आपकी अपनी मन की बात कह रहे हों....

आप भी महसूस कीजिये
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सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो
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किसीके वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
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यहाँ किसीको कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सम्भल सको तो चलो
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यही है ज़िंदगी, कुछ ख़ाक चंद उम्मीदें
इन्ही खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो"
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अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
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अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
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अपने लहजे की हिफाज़त कीजिए
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी
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अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
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एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
जिस तरफ देखिए आने को है आने वाला
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एक महफिल में कई महफिलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
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घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
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गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
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कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
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उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
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उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
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पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
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धन्यवाद

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