गायत्री तपोभूमि : मथुरा

यह संस्थान मथुरा-वृन्दावन मार्ग महर्षि दुर्वासा की तपःस्थली पर स्थापित किया गया है । इसे परम पूज्य गुरुदेव की चौबीस महापुरश चरणों की पूर्णाहुति पर की गयी स्थापना माना जा सकता है, जिसे विनिर्मित ही गायत्री परिवार रूपी संगठन के विस्तार के लिए किया गया था । इसकी स्थापना से पूर्व चौबीस सौ तीर्थों के जल व रज संगृहीत करके यहाँ उनका पूजन किया गया, एक छोटी किन्तु भव्य यज्ञशाला में अखण्ड अग्नि स्थापित की गयी तथा गायत्री महाशक्ति का मन्दिर विनिमत किया गया । समय-समय पर विभन्न प्रकार के वैदिक एवं पौराणिक यज्ञ इस स्थान पर संपन्न किए गये । समय-समय पर साधना एवं प्रशिक्षण सत्रों द्वारा धर्मत्रंत से लोकशिक्षण के अभियान को यहीं से गति दी गई ।

परम पूज्य गुरुदेव की जन-जन से मिलने, साधनाओं द्वारा मार्गदर्शन देने की कर्मभूमि गायत्री तपोभूमि रही है । यहाँ पर १०८ कुण्डी महायज्ञ (१९५३) में पहली बार पूज्यवर ने साधकों को मंत्र दीक्षा दी । व्यक्तिगत मार्गदर्शन द्वारा श्रेष्ठ नर रतनों का चयन कर गायत्री परिवार को विनिमत करने के कार्य का शुभारंभ यहीं से हुआ । सन ६०-६१ के हिमालय प्रवास से लौटकर पूज्य आचार्य श्री ने युग निर्माण विद्यालय के एक स्वावलम्बन प्रधान शिक्षा देने वाले तंत्र को आरंभ किया जो एवं अभी भी सफलता पूर्वक चल रहा है ।

परम पूज्य गुरुदेव की १९७१ की विदाई के बाद यहाँ कार्य-विस्तार के अनुरूप निर्माण हो गया है और कण-कण में उनकी प्राण चेतना का दर्शन किया जा सकता है । विराट प्रज्ञानगर, युग निर्माण विद्यालय, साहित्य की छपाई हेतु बड़ी-बड़ी आफसेट मशीनें तथा युग निर्माण साहित्य जो पूज्यवर ने जीवन भर लिखा, उसका वितरण-विस्तार तंत्र यहाँ पर देखा जा सकता है ।

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