छोटी कवितायें

शरद उत्सव
(गरीब का महोत्सव )

आओ मित्रों
अलाव जलाएं
कुछ दुःख सुख तुम कहो
कुछ हम कहें
मिलकर शरद महोत्सव मनाएं


घर

सोने को
मखमली घास
ओड़ने को आकाश
यही है गरीब का संसार

जख्म

शरीर के गहरे जख्म
माथे पर दुःख की लकीर
जुल्म की अनकही
दास्ताँ कह जातें हैं।


नेता
जनता भूख से कम
नेता के
झूटे वादों से ज्यादा मरती है ।

धन

तू है तो
जन्नत है
तू नही
तो कुछ भी नही .

3 टिप्‍पणियां:

रंजना [रंजू भाटिया] ने कहा…

बहुत सुंदर लगी आपकी लिखी यह छोटी कविताएं

shelley ने कहा…

aapki ya chchhoti chhoti kavitayen bahut sundar hain. dekhne me bhalehi hi choti hain par hain gamvir

Anonymous ने कहा…

जीत के बाद नेता जी
नेता के मन मैं
आ जाती है खोंट
जब उसे मिल जाते है वोट
जीत के बाद
जनता के मतदान से
देश के नव निर्माण के नाम पर
फिर जनता को जम कर लूटते है ।


दहेज
दहेज के अभाव में
गरीब की बछिया
कसाई को
सोप दी जाती है ।


नेताओं की चाल
जब तक हिन्दू मुस्लिम
आपस मे लड़ते रहेंगे
तब तक नेताओं से
लुट्ते रहेंगे


नेताजी की जीत की खुशी
राज्य में भयंकर सूखा पडा था
खेत नदी बावडी सब सुख गये थे
पीने का पानी खत्म हो गया था
निरीक्शण पर आये
नेताजी आगमन पर
जम के शराब परोसी गयी
रात भर सब मदहोश थे
अगले दिन अखबारों में
मोटे मोटे अक्शरों में खबर छपी थी
कि पानी की कमी से 18
दारू पीने से 150 मरे