यादें


यादें: प्रतिभा की.....
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बिंदी...
प्रतिभा को बिंदियों से बहुत प्यार था वो भी मैचिंग बिंदी... मुझे याद है ऑफिस हो, घर हो या हॉस्पिटल हो उसे माथे की बिंदिया चाहिए ही होती थी... कहीं घूमने जाना हो या पीहर या ससुराल बिंदी पहले रखती थी... यहां तक की जब घर से हॉस्पिटल सामान जाता था तो उसमे पहले वह बिंदी ढूंढती थी... नहीं दिखने पर नाराजगी जताते हुए कहती थी "जीके" मेरी बिंदी कहां है... ओह हो ये नहीं यार वो बड़ी वाली बिंदियां लानी थी... 

मेहंदी...
करवा चौथ या अन्य कोई भी तीज त्यौहार होता था, वो सुबह सुबह मुझे उठाकर कहती थी "जीके" देखो मेरी मेहंदी सबसे अच्छी रची है... वो जब भी पीहर या मुझसे दूर होती थी... अपनी रची हुई मेहंदी का जिक्र जरूर करती थी.. और फोटो भी भेजती थी ... फेसबुक पर भी डालती थी..

नए कपड़े....
प्रतिभा को नए कपड़ों का और जूतों चप्पलों का बहुत शौक था... दिवाली हो या बर्थडे उसे इन दिनों में नए कपड़े जरूर चाहिए होते थे... चाहे मां रूठे या बाबा उसे कपड़े नए ही चाहिए अपने लिए ही नहीं हम सबके लिए भी. 

मेहमान नवाजी..
प्रतिभा को खाने और खिलाने का भी शौक था... नया साल हो या खास तौर पर परितोष का बर्थडे हो तो हमारे घर पार्टी जरूर होती थी, और सारा खाना भी प्रतिभा ही बनाती थी वो भी बैंक से आने के बाद... बाजार से केवल एक केक और एक बाटली आती थी.. हां खाने में पनीर और छोले जरूर होते थे.. डांस गाना और अंताक्षरी जरूर होती थी.. बस यही जीने का अंदाज आज भी याद आता है...

परिवार...
परिवार का एक साथ इकट्ठा होना उसे अच्छा लगता था... मम्मी पिताजी से उसे बहुत प्यार था... पिताजी के कपड़े, रजाई गद्दे की उसे बहुत चिंता होती थी और पिताजी भी प्रतिभा की बातों को फटाफट से मान लेते थे.. प्रतिभा की देखते ही बहुत खुश होते थे... प्रतिभा के जाने का उनको भी बहुत दुख हुआ था.. हां मम्मी से भी वो बहुत बातें करती थी जिसमे मेरी बुराई जरूर होती थी... मां आज भी उसे याद करके रोती है और मुझे भी रुला देती है...

बाबुल का घर..
प्रतिभा अपने घर में भी सबसे ज्यादा प्रिय थी... तुरंत डिसीजन लेती थी... वैसे तो चौथे नंबर पर होने के बावजूद हमेशा नंबर 1 पर ही रहती थी... अपने भाई की भी इकलौती पसंद होती थी.. दोनों बहुत झगड़ते भी बहुत थे.. 

ऑफिस 
ऑफिस में समय की पंक्चुअल, कार्य में दक्ष, इतना ही नहीं बैंक द्वारा कई पुरुष्कारों से  नवाजी गई और बैंक को इंश्योरेंस का बिजनेस देने पर लगातार 5 साल तक MDRT रहीं... 

प्रतिभा : एक एहसास
प्रतिभा बिंदास थी, बिना भेदभाव के सभी को एक ही नजर से देखते थी... सच की पुजारी और एक नंबर की बेबाक थी... प्रतिभा वास्तव में प्रतिभा है आज भी... गणेश की प्रतिभा कहो या प्रतिभा का गणेश कहो एक ही बात है... हमारे घर की वो मुखिया थी... अक्सर सोचता हूं ना जाने कहां खो गई है वो.. 

प्रतिभा के पास 89 प्रतिशत मुस्कुराहट होती थी और बचा हुआ 11 प्रतिशत गुस्सा जबरदस्त होता था... जो भी होता था सच्चा होता था.. और वो भी सिर्फ मेरे लिए ही होता था...

हमारी शादी के कुछ दिन बाद प्रतिभा ने एक बार मुझसे कहा था "आप मूछों के बिना बच्चे लगते हो मेरे सामने, अब से तुम मूछें रखोगे" वो दिन है और आज का दिन मैंने कभी मूछें नहीं कटवाई... 

ऐसा नहीं की हमारे लड़ाई नहीं होती थी, जरूर होती थी आपसी मनमुटाव कहां नहीं होते.. हम भी झगड़ते थे... मैने देखा और सुना की लोग बीबी के पीहर जाने पर बहुत खुश होते थे.. लेकिन मैं क्या बताऊं... जब भी वो पीहर जाती थी तो मैं मौन हो जाता था क्योंकि मैं उसको बहुत मिस करता था थोड़ा नहीं बहुत सारा, ये वो भी जानती थी....

 प्रतिभा मेरी चर्चा सभी से करती थी, यानी सभी से (बुराई नहीं कहूंगा, जहां प्यार होता है वहां कश म कश तो होती ही है) इसका मतलब वो मुझे प्यार करती थी, उसके दिलो दिमाग में मैं भी होता था तभी तो हर किसी से हमारी बातें करती थी...

प्रतिभा को पारितोष से बहुत प्यार था, परितोष का बर्थडे तो वो एक फेस्टिवल की तरह मानती थी.. पारितोष की शादी वो भी कोविड के दौरान पूरे शौक के साथ कर के गई थी.. ये उसकी बड़ी इच्छाओं में से एक थी.. 




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