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पन्ना मीणा कुंड जयपुर

पन्ना मीणा  कुण्ड


जयपुर शहर में  आमेर महल के पास  1300 वर्ष पुरानी और करीब 200 फीट गहरी और करीब 1800 सीढ़ियों वाली ये अति सुन्दर बावड़ी देखकर देशी बिदेशी सैलानी रोमांचित हो जाते हैं। इस पन्ना मीणा की बावड़ी का इतिहास राजस्थान की मीणा जाती से सम्बंधित है. कहा जाता है की राजपूत शासन से पहले आमेर में मीणाओं का राज था और  मीणा शासक हमेशा शस्त्र धारण करके रहते थे। इस वजह से उनको मारना और उनपर विजय प्राप्त करना आसान नहीं था। कहते हैं  मीणा शासक वर्ष में एक बार दीवाली के दिन इस कुंड में स्नान करके शस्त्र को अपने से दूर रख, अपने पितरों को जल अर्पण करते थे और सामने स्थित शिव मंदिर में पूजा करते थे।


कहते हैं की एक बार राजपूतों को इसकी भनक लग गई . राजपूतो को इस राज़ की भनक लग गई फिर राजपूत और मीणा समुदाय की लड़ाई में मीणों के राजा पन्ना मीणा का वध हो गया और आमेर में राजपूतों का शासन हो गया। उन्ही पन्ना मीणा की याद में यह कुंड  प्रसिद्ध है .


पन्ना मीणा कुंड, आमेर जयपुर 

पन्ना मीणा कुण्ड के आस पास बहुत से पुराने दर्शनीय मंदिर भी हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं. 

सागर झील जयपुर

सागर झील - जयपुर 

जयपुर के एतिहासिक शहर आमेर किले के पीछे स्थित है। जयपुर की यह सुन्दर कृतिम झील पर्यटकों और फ़िल्म निर्माताओं के लिए एक सुरम्य स्थल है।आमेर  महल और सागर झील  के बीच एक छोटी पहाड़ी है, यहाँ से एक ओर जयगढ़ किला  और दूसरी ओर आमेर की पहाड़ियाँ हैं। सागर झील के चारों ओर बनी खूबसूरत पाल इसे ख़ास और दर्शनीय बनाती है। यहाँ पुराने मंदिर भी हैं. यहाँ से पहाड़ियों पर बनी विशाल प्राचीरों और निगरानी मचानों पर भी जाया जा सकता है जहाँ से आमेर  का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यहाँ बहुत से बंदर भी देखे जा सकते हैं . सागर आकर लगता है की आप एक शांत सुर सुन्दर प्राकर्तिक जगह पर आ गए हो .
सागर के पास ही पन्ना मीना का कुंड भी है जो बहुत ही सुन्दर है.

सागर झील के किनारे पुराना मंदिर और ऊपर बुर्ज से आप पहाड़ियों और महलों  के दृश्य का आनंद ले सकते हैं. सागर ट्रैकिंग के लिए एक बहुत ही अच्छी जगह मानी जाती है. 


यही सागर कुंड है . इस वर्ष वर्षा की कमी के कारण यह खाली है 

गलता जी जयपुर

गलताजी - जयपुर


गलताजी जयपुर शहर की पवित्र धर्मस्थली है . जयपुर शहर से  10-12 किलोमीटर दुरी पर बना गलता मंदिर अरावली पहाड़ियों से घिरा है . गलता जी में पुरे वर्ष श्रद्धालू दर्शन व् स्नान को आते हैं लेकिन सावन में गलता जी अपना अलग महत्व रखता है। बहुत से श्रद्धालू कावडिए़ यहां जल भरने के लिए पहुंचते हैं क्योंकि गलता कुंड का पानी बहुत ही पवित्र माना जाता है।

कहते हैं कि संत गालव ऋषि ने अपनी पूरी जिंदगी इसी स्थान पर तपस्या की  थी।  जिससे खुश होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि वे जिस स्थान पर बैठे हैं वो हमेशा पूजी जाएगी। साथ ही यहां का पानी पवित्र होगा। ऋषि  गालव के सम्मान में यहां एक मंदिर बनवाया गया। जिसका नामकरण भी गालव के नाम पर किया गया। जो गालव से गलता बना है  कहते हैं  कि गलता कुंड में स्नान करने से ही आपके सारे पाप धुल जाते हैं।

कहते हैं इस मंदिर की स्थापना 18वीं शताब्दी में राजा मानसिंह के राज में की गई थी.  अरावली पहाड़ियों से घिरा यह मंदिर गुलाबी रंग से बना है और  इस मंदिर परिसर में दो कुंड बने हुए हैं। एक मरदाना और एक जानना यहाँ  सावन के दिनों में आसपास के जिले के लोग बड़ी संख्या में स्नान करने पहुंचते हैं। गलत जी मंदिर परिसर में बहुत से मंदिर हैं जिनमे प्रमुख ब्रह्मा मंदिर भी है. यहाँ बहुत से बन्दर भी हैं इस लिए इसे विदेशी मंकी टैंपल भी कहते  हैं।

गलता परिसर में पुराने मंदिर 

गलता कुंड के परिसर में बनी प्राचीन इमारतें 

गलता जी में बहुत से बन्दर हैं जो सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र  हैं  बहुत से पर्यटक इनके साथ आनंदित होते हैं . सामान्य तौर पर ये किसी तरह की  हानि नहीं पहुंचाते हैं .

गलता कुंड का विहंगम दृश्य 

गलता परिसर में एक प्राचीन मंदिर जहाँ पर रोज़ प्रसाद का वितरण किया जाता है.

यह गलता का जानना  कुंड है जहाँ महिलाए स्नान करती हैं .इसी के ऊपर मरदाना कुण्ड है 

जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं



जागेश्वर : जहाँ शिव हमेशा जाग्रत हैं  

उत्तराँचल राज्य के अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 34 किमी दूर जागेश्वर धाम  स्थित  है. इस स्थान को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूण के नाम से जाना जाता है। समुद्र तल से करीब 1860 मीटर उंचाई पर स्थित यह स्थान अपने मंदिरों के लिये विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर समूह में स्थित शिवलिंग द्वादश शिवलिंगों में से एक है। देवों के देव महादेव का यह धाम चारों ओर देववृक्ष देवदार के घने पेडों से घिरा होने के कारण यह स्थान आध्यात्मिक क्रिया कलापों के लिए एक शांत स्थान है, वहीं प्रकृति की सुन्दरता ने इसे और भी मनोरम बना डाला है। सामने फैली मनमोहक घाटी, सीढीदार खेतों एवं दो मंजिला पारंपरिक मकानों का आकर्षण बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। यह मंदिर समूह जटा गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसा है और चारों तरफ फैली हरियाली एवं देवदार के पेडों से भरे भव्य पहाड प्रकृति के विशेष  आनन्द प्रदान करने में सक्षम हैं।
जागेश्वर धाम के मंदिर अपने वास्तुकला के लिये बेहद प्रसिद्ध हैं। मुख्य मंदिर परिसर में करीब 125 प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इनमें 108 मंदिर भगवान शिव के हैं जबकि 17 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को यहाँ मुख्य मंदिर का दर्जा दिया जाता है. सुर, नर, मुनियों द्वारा भगवान शिव के पूजन से इस जाग्रत स्थान का नाम जागेश्वर पड़ा होगा. हमारे धार्मिक ग्रंथों में खासकर  स्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया गया है ।  लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर संसार के पालनहार भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। इतना ही नहीं  जागेश्वर  मंदिर समूह  पूर्व में कोटेश्वर, पश्चिम में डंडेश्वर, उत्तर में वृद्ध जागेश्वर व दक्षिण में झांकर सैम मंदिर से घिरा हुआ है और ये सभी स्थान बहुत ही प्राचीन और अपना अध्यात्मिक महत्व रखते हैं.

पुराणों के अनुसार रावण, मार्कण्डेय, पांडव व लव-कुश ने भी यहाँ शिव पूजन किया था इतना ही नहीं भात्वान शिवजी तथा सप्तऋषियों ने भी यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजयमें स्थापित शिवलिंगको कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएंही पूरी हो सकती हैं।

सावन के महीने में यहां भगवान शिवजी की विशेष पूजा अर्चना करने लोग दूर दूर से आते हैं. पूरे सावन के महीने भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। जागेश्वर मंदिर समूह जाने के लिए एक छोटे से बाजार से गुजरना पड़ता है जो की पहाड के ग्रामीण अंचल की संस्कृति की बहुत सुन्दर छवि प्रकट करता है. मंदिर समूह के पास ही एक राजकीय संग्रहालय भी बनाया गया है जिसमें कई प्राचीन मूर्तियों को संरक्षित किया गया है।

जागेश्वर मंदिरों के पास ही एक शमशान घाट भी है। यहां के लोगों का मानना है कि इसमें दाह संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए आस पास के गांव वाले या अन्य जगह के लोग अपने सगे सम्बन्धियों का दह संस्कार यही करना चाहते हैं.

सभी उत्तराँचल वासिओं को जागेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम के दर्शन जरूर करने चाहिये. जटा गंगा और कदर्पी नदी के किनारे बसा यह शिव धाम बहुत ही मनमोहक स्थान है जहा भगवान शिव के आशीर्वाद के साथ साथ मन को अध्यात्मिक एवं मनोवैग्यानिक शांति मिलती है. अब तो यहाँ पर्यटकों के लिए सरकारी होटल के साथ साथ निजी होटलों की भी व्यावस्था है इतना ही नहीं  पूर्ण शाकाहारी भोजन के साथ साथ यहाँ जरूरत की सभी चीजें आसानी से उपलब्ध है.

| जय भारत जय उत्तराखंड |

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